झारखंड के गुमला जिले के जनजातीय बहुल जारी गांव में जन्मे अल्बर्ट एक्का ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में अदम्य साहस दिखाया. उन्होंने पाकिस्तान में घुसकर दुश्मनों के बंकर नष्ट किए और कई सैनिकों को मार गिराया. उनकी वीरता के कारण भारत को युद्ध में जीत मिली. तीन दिसंबर 1971 को वे शहीद हुए. उनके बलिदान और वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र, देश का सर्वोच्च सैन्य सम्मान, प्रदान किया गया.
15 भारतीय सैनिकों को मरता देख अलबर्ट एक्का दौड़ पड़े
भारत-पाक युद्ध की कहानी के अनुसार 1971 के युद्ध में 15 भारतीय सैनिकों को मरता देख अलबर्ट एक्का दौड़ते हुए बंदर की तरह टॉप टावर के उपर चढ़ गये थे. उसके बाद टॉप टावर के मशीनगन को अपने कब्जे में लेकर दुश्मनों को तहस नहस कर दिये थे. इस दौरान उसे 20 से 25 गोलियां लगी थी. पूरा शरीर गोलियों से छलनी था. वे टॉप टावर से नीचे गिर गये. जहां उन्होंने अंतिम सांस ली थी. बताया जाता है कि 20 वर्ष की उम्र में अलबर्ट ने 1962 ईस्वी में चीन के विरुद्ध युद्ध में अपनी बुद्धि व बहादुरी का लोहा मनवाया था. उसके बाद 1968 में बलमदीना एक्का से उनका विवाह हुआ. बलमदीना से शादी के बाद 1969 में एक पुत्र हुआ. जिसका नाम भिंसेंट एक्का है. अलबर्ट एक्का 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लिये. जहां दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गये थे.
सैनिक स्कूल की मांग अधूरी
देश के लिए जान देने वाले शहीद अलबर्ट एक्का के नाम से गांव में सैनिक स्कूल खोलने की मांग अबतक अधूरी है. जारी गांव में सैनिक स्कूल की मांग अबतक पूरी नहीं हुई है. जिस कारण सेना में जाने वाले युवा उपेक्षित हैं. यहां के लोगों ने सैनिक स्कूल खोलने की मांग की है.
संग्रहालय बनाने की मांग की
पूर्वोतर भारत में शहीद अलबर्ट एक्का एकमात्र परमवीर चक्र विजेता हैं. इसलिए लोगों की लंबे समय से मांग है. जारी प्रखंड मुख्यालय में शहीद के नाम पर संग्रहालय बने. जहां शहीद की वीरता की कहानी लिखी हो. जिसे आने वाली युवा पीढ़ी पढ़कर व जानकारी देश सेवा के पथ पर आगे बढ़ सके.
हॉकी के अच्छे खिलाड़ी थे, निशानेबाजी में भी आगे थे
वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का का शहादत दिवस तीन दिसंबर को है. शहीद अलबर्ट एक्का की पुरानी यादों के बारे में बात करेंगे तो वे हॉकी खेल के एक अच्छे खिलाड़ी थे. जब वे अपने दोस्तों के साथ हॉकी प्रतियोगिता में भाग लेते थे तो जीत सुनिश्चित रहती थी. जीत भी ऐसी कि एक दिन पूरा गांव जश्न मनाता था. इसके साथ ही वे एक अच्छे निशानेबाज भी थे. चिड़ियां को गुलेल से ही मारकर गिरा देते थे. अलबर्ट एक्का के दोस्त जारी गांव निवासी दिलबोध बड़ाइक बतातें हैं कि हॉकी खेल में उनका कोई सानी नहीं था. अगर किसी गांव में खस्सी या बंडा प्रतियोगिता का आयोजन होता था तो वे अपने दोस्तों के साथ मिलकर फीस जमा करते थे और प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पहुंच जाते थे. उनकी टीम की निश्चित रूप जीत होती थी. तीन-चार जगहों पर प्रतियोगिता जीत कर आते थे और एक दिन पूरे गांव के लोग मिलकर जश्न मनाते थे. वे गांव के गरीब व विधवा लोगों को खेजा (हिस्सा) लगाकर बांटते थे.
एतवा बड़ाइक ने बताया कि परमवीर अलबर्ट एक्का शुरू से ही लोगों के साथ मिलनसार व्यवहार के व्यक्ति थे. उनकी निशानेबाजी भी अच्छी थी. वे गुलेल से चिड़िया को एक बार में ही मार गिराते थे. गांव के लोग भी उससे काफी प्यार करते थे. वे किसी का कहा हुआ कोई भी काम को न में उत्तर नहीं देते थे. बल्कि काम करके दिखा देते थे. रूडोल किस्पोट्टा ने बताया कि अलबर्ट एक्का बचपन से ही जुझारू प्रवृत्ति का लड़का था. वे जिस काम को करने के लिए मन में ठान लेता था. उस काम को वे कर ही देते थे. देश के लिए उनकी कुर्बानी कभी भुलायी नहीं जा सकती है.